Posted on April 16, 2011 at 2:50 AM |
कन्या की कुण्डली में वैवाहिक स्थिति
कन्या के माता पिता को अपनी पुत्री की शादी के सम्बन्ध में सबसे अधिक चिन्ता रहती है. कन्या भी अपने भावी जीवन, पति, ससुराल एवं उससे सम्बन्धित अन्य विषयों को लेकर फिक्रमंद रहती है.
ज्योंतिषशास्त्र के अनुसार कन्या की कुण्डली का विश्लेषण सही प्रकार से किया जाए सभी विषयों की पूरी जानकारी प्राप्त की जा सकती है.
जीवनसाथी
कन्या की शादी में सबसे अधिक चिन्ता उसके होने वाले पति के विषय में होती है कि वह कैसा होगा. सप्तम भाव और सप्तमेश विवाह में महत्वपूर्ण होता है. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सप्तम भाव में शुभ ग्रह यानी चन्द्र, गुरू, शुक्र या बुध हो अथवा ये ग्रह सप्तमेश हों अथवा इनकी शुभ दृष्टि इस भाव पर होने पर कन्या का होने वाला पति कन्या की आयु से सम यानी आस पास होता है. यह दिखने में सुन्दर होता है. सूर्य, मंगल, शनि अथवा राहु, केतु सप्तम भाव में हों अथवा इनका प्रभाव इस भाव पर हो तब वर गोरा और सुन्दर होता है और कन्या से लगभग 5 वर्ष बड़ा होता है. कन्या की कुण्डली में सूर्य अगर सप्तमेश है तो यह संकेत है कि पति सरकारी क्षेत्र से सम्बन्धित होगा. चन्द्रमा सप्तमेश होने पर पति मध्यम कदकाठी का और शांति चित्त होता है. सप्तमेश मंगल होने पर पति बलवान परंतु स्वभाव से क्रोधी होता है. मध्यम कदकाठी का ज्ञानवान और पुलिस या अन्य सरकारी क्षेत्र में कार्यरत होता है. सप्तम भाव में शनि अगर उच्च राशि का होता है तब पति कन्या से काफी बड़ा होता है और लम्बा एवं पतला होता है. नीच का शनि होने पर पति सांवला होता है.
जीवन साथी की आयु
लड़की की जन्मपत्री में द्वितीय भाव को पति की आयु का घर कहते हैं. इस भाव का स्वामी शुभ स्थिति में होता है अथवा अपने स्थान से दूसरे स्थान को देखता है तो पति दीर्घायु होता है. जिस कन्या के द्वितीय भाव में शनि स्थित हो या गुरू सप्तम भाव स्थित हो एवं द्वितीय भाव को देख रहा हो वह स्त्री भी सौभाग्यशाली होती है यानी पति की आयु लम्बी होती है.
शादी की उम्र:
कन्या जब बड़ी होने लगती है तब माता पिता इस बात को लेकर चिंतित होने लगते हैं कि कन्या की शादी कब होगी. ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि से कन्या की लग्न कुण्डली में सप्तम भाव का स्वामी बुध हो और वह पाप ग्रहों से पीड़ित नहीं हो तो कन्या की शादी किशोरावस्था पार करते करते हो जाती है. सप्तम भाव में सप्तमेश मंगल हो और वह पाप ग्रहों से प्रभावित है तब भी शादी किशोरावस्था पार करते करते हो जाती है. शुक्र ग्रह युवा का प्रतीक है. सप्तमेश अगर शुक्र हो और वह पाप ग्रहों से दृष्टि हो तब युवावस्था में प्रवेश करने के बाद कन्या की शादी हो जाती है. चन्द्रमा के सप्तमेश होने से किशोरावस्था पार कर कन्या जब यौवन के दहलीज पर कदम रखती है तब एक से दो वर्ष के अन्दर विवाह होने की संभावना प्रबल होती है. सप्तम भाव में बृहस्पति अगर सप्तमेश होकर स्थित हो और उस पर पापी ग्रहों का प्रभाव नहीं हो तब विवाह समान्य उम्र से कुछ अधिक आयु में संभव है.
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